मेरा बेटा, उसका बेटा या उसका बेटा

पूछेगा - नदी क्या होती है?
जवाब होगा - नदी बेटी, पत्नी और माँ की तरह होती है.
उसके किनारे सभ्यता और संस्कृति पनपती है.
फिर वो पूछेगा - कौन उठा लेगया उसे ?
जवाब होगा - किनारे की सभ्यता पीगई उसे
संस्कृति ने तबाह कर दिया.
आज से पाँच साल बाद, पचास साल बाद, पाँच हज़ार साल बाद
मेरा
बेटा, उसका बेटा या उसका बेटापूछेगा - पेड़ क्या होता है?
जवाब होगा- पेड़ बेटा बाप और दादा की तरह होता है.
उसके सहारे लोग जीते हैं सांस लेते हैं.
फिर वो पूछेगा - कौन मार दिया उसे?
जवाब होगा - किनारे के लोगों ने मार दिया
सभ्यता ने बरबाद कर दिया
आज से पाँच साल बाद, पचास साल बाद, पाँच हज़ार साल बाद
मेरा बेटा उसका बेटा या उसका बेटा
पूछेगा - किनारे के लोग एसे क्यूँ थे?
और उस वक़्त उसके इस प्रश्न का किसी के पास कोई जवाब नहीं होगा .
क्या आपके पास है?
मेरा बेटा उसका बेटा या उसका बेटा
पूछेगा - किनारे के लोग एसे क्यूँ थे?
और उस वक़्त उसके इस प्रश्न का किसी के पास कोई जवाब नहीं होगा .
क्या आपके पास है?

8 comments:
आज से पाँच साल बाद, पचास साल बाद, पाँच हज़ार साल बाद
जब नदी नहीं होगी जब पेंड़ नहीं होंगे मेरा बेटा भी नहीं होगा मै भी नहीं
न प्रश्न होंगे न उत्तर
होगी तो सिर्फ बेचैन आत्माएँ
--प्रकृति से खिलवाड़ करने वालों को सचेत करती अच्छी पोस्ट।
आज से पाँच साल बाद, पचास साल बाद, पाँच हज़ार साल बाद
मेरा बेटा, उसका बेटा या उसका बेटा
पूछेगा - नदी क्या होती है?
जवाब होगा - नदी बेटी, पत्नी और माँ की तरह होती है.
उसके किनारे सभ्यता और संस्कृति पनपती है.
फिर वो पूछेगा - कौन उठा लेगया उसे ?
जवाब होगा - किनारे की सभ्यता पीगई उसे
संस्कृति ने तबाह कर दिया
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने संभव भाई जिस तरह से लोगों ने प्रकृति से खिलवाड़ करना शुरू कर दिया है पचास साल आने कि नौवत ही नहीं आएगी उससे पहले ही सब ख़त्म हो जाएगा, फिर हमारे बच्चे डाइनासोर की तरह पेड़, नदियाँ, और संस्कृति के बारे में पूछेंगे. आपके ऐसे ही उम्दा लेख का इन्तजार रहेगा.
आपने बहुत व्यथित करने वाला प्रश्न उठाया है...हम नदी जंगल और पहाड़ों का दोहन कब तक ऐसे ही करते रहेंगे...आने वाली नस्लें क्या कभी हमें माफ़ करेंगी...ये हमें अभी ही सोचना होगा वर्ना बहुत देर हो जाएगी...
मेरा एक शेर आपको सुनाता हूँ:
इक नदी बहती कभी थी जो यहाँ
बस गया इन्सां तो नाली हो गयी
नीरज
वाकई अब जैसा खिलवाड़ प्रकृति से हो रहा है...सभ्यता शायद ही बचे....
अच्छी प्रस्तुति..
होता रहा यही तो पचास हजार साल बाद न कोई पूछने वाला होगा न जवाब देने वाला।
विचारणीय पोस्ट लिखी है।आभार।
ek behad zaroori soch .
Post a Comment