कुछ अनमने से अलसाये दिन
Posted by
कुमार संभव
at
10:56 PM
पता नही कब से मेरी नीद खुली थी... बिस्तर पर लेटा - लेटा ऊपर धीरे धीरे घूमते पंखो को देख रहा था। इन अध्जगी आखों में रात के खाब अबभी अपने अक्स छोड जा रहे थे।
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1 comments:
बहुत खूब। भावनाओं को शब्दों से सजाना कोई आपसे सीखे।
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