साँझ

जब कुछ ख़त्म होने को हो तो उसका होना मालूम होता है.

याद



बूंदे गिरी पते फड़ फाड़ने लगे
चारो तरफ काली घटा छाई
मिट्टी से सोंधी खुशबू उठी
रुकी हुई बरसात लौट आई

तन के साथ साथ मन भी गिला हुआ
जब जब तुम्हारी याद आई

मै जीत गया

क्या मै सूख रहा हूँ ?
क्या मै तैयार नहीं था ?
क्या मेरी शुरुवात कमजोर थी ?
क्या एसे ही मरते हैं लोग ?

एसे सवालों से मै जूझ रहा हूँ
इनके जवाब मेरे पास नहीं हैं.
इनके जवाब तलाश रहा हूँ.
मै अब इन सब से लड़ रहा हूँ.

शायद मेरे ये एहसास समाधान की शुरुवात हैं.
शायद "संघर्ष" ही इन सवालों के जवाब हैं.
शायद मैने रास्ता ढूंढ लिया है.
शायद मै जीत जाऊँगा.

हाँ, मै जीत गया...
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